Tania Shukla

Add To collaction

सिंदबाद , मैजिकल लाइफ

दोनों बाप बेटे वहीं बैठ कर बातें करने लगे। सिंदबाद की अम्मी भी उन दोनों को एक साथ खुशी खुशी वक्त गुजारते देखकर बहुत ही ज्यादा जज्बाती हो रही थी। उनके जज्बात आंखों के रास्ते आंसुओं की शक्ल में बाहर आ रहे थे। खुशी संभाले नहीं संभल रही थी।


  उन्होंने प्यार से दोनोँ को झिड़कते हुए कहा, "आप दोनों बाप बेटों को तो अपने से ही फुर्सत नहीं है। आप लोगों की नजर मुझ पर क्यों जाएगी??"


  ऐसा कहकर झूठ मूठ का गुस्सा दिखाने लगी।  शहरयार साहब ने भी प्यार से उन्हें अपने पास बैठाते हुए कहा, "बेगम आप ही के कारण तो आज इतनी खुशी हमें नसीब हुई है। इसलिए आज के इस मुबारक मौके पर आप ऐसे ना रूठे।"

 इसी तरह छोटी मोटी प्यार भरी नोकझोंक उस परिवार में चल रही थी। सिंदबाद ने मदरसे से वापस आने के बाद भी अपने पुराने रवैये नहीं बदले।  उसका वही दोस्तों के साथ घूमना फिरना मौज मस्ती करना ही उसका एक इकलौता मकसद बन गया था। पैसों की कोई तकलीफ तो थी नहीं.. जो उसे अपने मुस्तकबिल की चिंता हो। पर उसके इसी लापरवाह रवैये को देखते हुए उसके  मां बाप ने कई बार उसे समझाने की कोशिश की। हर बार ही वो उनकी हर नसीहत को मजाक में उड़ा देता था।

 उसके अब्बा उसे हमेशा कहते थे।


   "बेटा मुफ़लिसी बहुत ही जालिम होती है। इसे एक सीख समझो। मुफ़लिसी में जीने से तो अच्छा है अल्लाह हमें मौत ही दे दे। क्योंकि मुफ़लिसी एक दोज़ख की तरह है।"  

पर इतनी नसीहतों के बाद भी सिंदबाद को एक भी नसीहत समझ नहीं आई।  उसने हमेशा उनकी बातों को लतीफा समझकर हवा में उड़ा दिया। उसके इसी लापरवाह रवैये की वज़ह से उसके अब्बू जन्नतनशीं हो गए।

 अब उसके लापरवाह रवैये को और भी ज्यादा ताकत मिल गई थी।  क्योंकि कहा जाता है कि अगर किसी लड़के का बाप जल्दी ही मर जाए.. तो वह लड़का खुद मुख्तार हो जाता है।  उसकी अम्मी ने भी सिंदबाद को  समझाने की पुरजोर कोशिशें की.. पर जवानी के जोश में उसे उनकी सारी नसीहतें बेमानी लगती थी। 


उसे लगता था कि इस दुनिया में सिंदबाद को समझने वाले सिर्फ और सिर्फ उसके दोस्त ही थे।  क्योंकि वे सब उसकी हर अच्छी-बुरी कारगुजारी में बराबर के हिस्सेदार होते थे। उन्होंने कभी  सिंदबाद को रोकने की या समझाने की कोशिश नहीं की। वो जिस रास्ते पर चल रहा था.. वो रास्ता सिर्फ बर्बादी की तरफ ही जाता था।  यह भी हो सकता था कि उन लोगों को सिंदबाद की दौलत में ही दिलचस्पी थी।


  सिंदबाद भी हमेशा उन्हें अपने भाई से बढ़कर मानता था। उन्हीं के साथ घूमना-फिरना, मौज मस्ती करना ही उसकी जिंदगी का इकलौता मकसद बन गया था। सिंदबाद ने उनके साथ दुनिया भर की सारी बुरी आदतें सीखी थी। उन्हीं की वजह से सिंदबाद के अंदर सारे ऐब पैदा हो गए थे।

 सिंदबाद की अम्मी उसकी चिंता में घुली जा रही थी। पर वो दीन दुनिया से बेखबर अपनी ही ख्याली दुनिया में मशरूफ था। उस ने कभी अपनी अम्मी की चिंता नहीं की।


सिंदबाद की अम्मी ने जल्दी ही उसकी सभी बुरी आदतें और उसके नामुराद बिगड़े दोस्तों से पीछा छुड़ाने के लिए.. उसके उसका निकाह करवाने का फैसला किया। उन्होंने अपनी ही रिश्तेदारी की एक नेक और खूबसूरत लड़की से सिंदबाद का निकाह पक्का कर दिया। वह लड़की बहुत ही ज़हीन और आला दर्जे की नेक और दीनदार बच्ची थी। 

सिंदबाद भी अपने निकाह की बात सुनकर बहुत ही ज्यादा खुश था। सिंदबाद की अम्मा उसके गम में  बहुत ही ज्यादा बीमार रहने लगी थी। जिसके कारण जिसकी वजह से उन्हें कई बीमारियों ने घेर लिया था। बकौल हकीम साहब वह कुछ ही दिनों की मेहमान थी। पर सबसे ज्यादा उन्हें सिंदबाद की लापरवाहियां तोड़ती थी।

 उन्होंने भी जल्द से जल्द सिंदबाद की दुल्हन को घर में लाने की तैयारियां शुरू कर दी। कुछ एक महीने बाद की तारीख निकाह के लिए मुकर्रर की गई। सिंदबाद की अम्मी ने आनन-फानन में अपने नजदीकी रिश्तेदारों को इत्तला करके निकाह में आने के लिए इसरार किया। 


सिंदबाद की लापरवाहियों और उसकी बुरी आदतों की वजह से सिंदबाद की मां की हालत दिन पर दिन बिगड़ती जा रही थी। पर सिंदबाद ने कभी भी उसकी मां का ख्याल नहीं रखा। उसकी अम्मी उस बुरी हालत में भी सिर्फ सिंदबाद का भलाई सोच रही थी। उन्होंने सोचा था कि एक बार सिंदबाद का घर बस जायेगा तो एक वह सुधर जाएगा और अपनी जिम्मेदारियों को समझने लगेगा। पर हुआ बिल्कुल उसका उल्टा सिंदबाद ने अब अपना पूरा वक्त  सिर्फ अपनी शादी की तैयारियों और शादी के सपने देखने में ही खर्च करना शुरू कर दिया।


  धीरे धीरे उसके शौक और खर्चे बढ़ते ही जा रहे थे और साथ में घटती जा रही थी.. उनकी मिल्कियत। धीरे धीरे हालत इतनी बिगड़ गई थी कि घर चलाने में भी तकलीफ होने लगी थी। पर सिंदबाद ने अपनी आदतों को नहीं सुधारा। उसकी मां सिंदबाद की यह अहमकाना हरकतें बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी और वह सिंदबाद की चिंता में घुली जा रही थी। पर सिंदबाद ने कभी भी उनकी किसी बात पर ध्यान नहीं दिया। 


इन्हीं लापरवाहियों की वजह से एक दिन सिंदबाद की अम्मी अल्लाह को प्यारी हो गई। उस दिन सिंदबाद को अपनी अम्मी के जाने का बहुत ही अफसोस हुआ। उसने रोते हुए अपना काफी वक्त निकाल दिया। पर उसे अपनी मां की आखरी रुखसती के लिए जाना ही पड़ा। 

जब वह लोग उसकी अम्मी को दफना कर वापस आए तो सूना घर सिंदबाद को खाने के लिए दौड़ रहा था। अब तक उसकी अम्मी की  वजह से  उसे घर कभी भी खाली महसूस नहीं हुआ। पर आज जब उसकी अम्मी नहीं रही.. तब उससे उनकी कद्र महसूस हुई।


  हर जगह सिंदबाद को उसकी अम्मी की ही यादें नजर आ रही थी। कभी उसे खाने के लिए बुलाती दिख रही थी.. तो कभी किसी काम के लिए टोकती।  अब पछताने से कोई फायदा भी नहीं था। क्योंकि उसकी अम्मी उसे छोड़कर बहुत ही दूर जा चुकी थी। एक ऐसी जगह जहां से कोई भी वापस नहीं आता।

 अब सिंदबाद को उनकी कमी महसूस होने लगी थी। सिंदबाद को अब अपनी हर बुराई नजर आने लगी थी। पर सिंदबाद जिस रास्ते पर चल पड़ा था उस रास्ते से किसी का भी वापस आना नामुमकिन था। सिंदबाद ने अपने आप को सुधारने की कोशिशें करना शुरू कर दिया था... लेकिन सुधरना इतना मुश्किल होता है कि कभी-कभी कोशिश करने वाला टूट जाता है.. पर कोशिश है  कि कामयाब नहीं होती।


  ऐसा ही कुछ सिंदबाद के साथ भी हो रहा था। सिंदबाद जितना अपने आप को सुधारने की कोशिशें करता.. उतना ही उसके बिगड़े हुए दोस्त उसको बरगलाने की कोशिशें करते। सिंदबाद ने तो उनका साथ भी छोड़ दिया था।

 इस वक्त सिंदबाद को सिर्फ अपनी अम्मी की आखिरी ख्वाहिश पूरी करने करने का जुनून था। उसकी अम्मी की आखिरी ख्वाहिश थी.. की  सिंदबाद बस किसी तरह सुधर जाए और नेकी का रास्ता इख्तियार कर ले। 


अब सिंदबाद भी जान से कोशिशें करने लगा था। धीरे धीरे सिंदबाद को घर के असल हालातों का पता चलना शुरू हुआ था। सिंदबाद की अम्मी ने सिंदबाद को कई बार घर के हालात बताने की कोशिशें की थी। लेकिन  सिंदबाद ने कभी उनकी बात पर कान नहीं धरे।


  अब जब कर्जे वाले उसके घर तकादा करने के लिए आने लगे। तब उसे इस बात का इल्म हुआ.. कि घर की हालत वाकई में बहुत ही ज्यादा बिगड़ गई थी।  सिंदबाद की अम्मी किस तरह उस घर को चला रही थी इस बात का पता उन्होंने सिंदबाद को कभी नहीं लगने दिया। 


अब  सिंदबाद को सब कुछ असलियत पता चली तो वह अकेले में बैठ कर आंसू बहाने लगा था। सिंदबाद को अपनी गलतियों का पछतावा होने लगा था।अब सिंदबाद  दिल से चाहता था कि सब कुछ ठीक हो जाए। लेकिन सब कुछ ठीक करना इतना आसान कहां होता है। उसके लिए रात दिन एक करने पड़ते हैं। 


सिंदबाद ने अब अपने खोए हुए वजूद को पाने के लिए  कोशिश करना शुरू कर दिया था। उसने भागदौड़ करके अपने लिए आगे का रास्ता बनाने की कोशिशें तेज कर दी थी। जो भी कोई उसे किसी तरह का कोई रास्ता बताता.. उस रास्ते पर चलने के लिए तैयार हो जाता।


   22
6 Comments

Anjali korde

10-Aug-2023 11:08 AM

Awesome

Reply

RISHITA

06-Aug-2023 09:56 AM

Very nice

Reply

Babita patel

04-Aug-2023 05:57 PM

Nice

Reply